Tuesday, December 22, 2015

जब आँख खुल जाती हैं तो

बहुत बुरा होता हैं रात में आँख खुल जाना
आँख लग जाने से भी बुरा यक़ीनन
देर रात जब मेरी आँख खुल जाती हैं तो
मुझे सुनाई देती है दूर किसी हाईवे की चीखे
आँखों में सुज़न लिए एक परिचित ड्राइवर
बिना कोई मंजिल के भागता फिरता नज़र आता हैं
आँख खुल जाती हैं तो बिस्तर की सिलवटे बन जाती हैं सांप
और नाक किसी खुश्बो को ढूंढता आवारा कुत्ता बन जाता हैं
उठ खड़े होने के विचार आते तो हैं पर आँख कमबख्त
न सोने देती हैं न उठने !
वो चाहती हैं की में किसी कीड़े की माफिक यूँही रेंगुता रहू
कस्तूरी की चाह में फिरते हिरन की तरह वनवन घूमता रहू बैचेन
मैं जानता हूँ की हिरन और कस्तूरी दोनों एक ही हैं
फिर भी मैं आँख खुल जाने से डरता हूँ हमेशा
कई बार में अपनी आँखों को नोंचकर ऊपर की अलमारी में रख देता हूँ
वहां कुछ पुराने खिलोने पड़े हैं वहाँ
आँख खुल भी जाए तो खेलती रहती हैं उसके साथ
वहां ऊपर अलमारी में अच्छा ख़ासा अँधेरा होता हैं
अलमारी के खिलोने बुरा नहीं मानते किसी भी बात
नहीं होती हैं उनको मुझसे कोई शिकायत
अलमारी में आँख नहीं खोजती हैं कोई भी खुशबु !


- मेहुल मंगुबहन, १९ दिसंबर २०१५, अहमदाबाद