बहुत बुरा होता हैं रात
में आँख खुल जाना
आँख लग जाने से भी बुरा
यक़ीनन
देर रात जब मेरी आँख खुल
जाती हैं तो
मुझे सुनाई देती है दूर
किसी हाईवे की चीखे
आँखों में सुज़न लिए एक
परिचित ड्राइवर
बिना कोई मंजिल के भागता
फिरता नज़र आता हैं
आँख खुल जाती हैं तो बिस्तर
की सिलवटे बन जाती हैं सांप
और नाक किसी खुश्बो को
ढूंढता आवारा कुत्ता बन जाता हैं
उठ खड़े होने के विचार आते
तो हैं पर आँख कमबख्त
न सोने देती हैं न उठने !
वो चाहती हैं की में किसी
कीड़े की माफिक यूँही रेंगुता रहू
कस्तूरी की चाह में फिरते
हिरन की तरह वनवन घूमता रहू बैचेन
मैं जानता हूँ की हिरन और
कस्तूरी दोनों एक ही हैं
फिर भी मैं आँख खुल जाने
से डरता हूँ हमेशा
कई बार में अपनी आँखों को
नोंचकर ऊपर की अलमारी में रख देता हूँ
वहां कुछ पुराने खिलोने
पड़े हैं वहाँ
आँख खुल भी जाए तो खेलती
रहती हैं उसके साथ
वहां ऊपर अलमारी में
अच्छा ख़ासा अँधेरा होता हैं
अलमारी के खिलोने बुरा
नहीं मानते किसी भी बात
नहीं होती हैं उनको मुझसे
कोई शिकायत
अलमारी में आँख नहीं
खोजती हैं कोई भी खुशबु !
- मेहुल मंगुबहन, १९ दिसंबर २०१५, अहमदाबाद