Wednesday, October 7, 2015

कल सुबहे का सूरज जब उगेगा

कल सुबहे का सूरज जब उगेगा तो उसकी प्रत्येक किरण हमसे पूछेगी
घोर अंधकार में रातभर तुमने क्या किआ ?
क्या हम यह कहेंगे की रातभर चाँद में देखते रहे माशूका का चहरा
या फिर यह कहेंगे की उसकी नर्म आगोश में मुझे धुप से भी ज्यादा सुकून था
हम कह देंगे की रातभर हम खेलते रहे ताश मस्ती से
या लगाते रहे जाम पर जाम भयावह अँधेरे के गम में
कल सुबहे का सूरज जब उगेगा और उसकी प्रत्येक किरण करेगी हमसे सवाल
तो हम बोल देंगे कुछ फिल्मो के नाम
हम बोल देंगे रात को मेरा वोट्सेप बंध था मुझे कुछ नहीं पता !
हम कह देंगे सूरज को की तेरी तो....
चोवीस घंटे होती हैं यहाँ टोरेंट की बिजली भाड़ में जाये तेरी किरण !
हम कह देगें किरण से की इस जिन्दगी से फुर्सत कहाँ
जो हम अँधेरे या उजाले के बारे में सोचे !
कल सुबहे जब सूरज उगेगा और किरण पूछेगी हमसे अँधेरे के बारे में
तो हम सीना चौड़ा कर गर्व से कहेंगे
अबे कौनसा अँधेरा ? कैसा अँधेरा ?
फिर कल सूरज निकल जायेगा चुपचाप
सारी किरने हो जाएगी खामोश
फिर परसों
फिर नरसों
दिन गुजरते जायेंगे
सूरज चढ़ते उतरते जायेगे
मौसम बदलते जायेंगे
और हम भूलते जायेंगे
अँधेरे के माने क्या होते है ?
उजालो का अर्थ क्या होता है ?
रौशनी का सुख किसे कहते है ?
फिर एक दिन समय की दीवार हो जाएगी पूरी काली


मेहुल मंगुबहन, ७ ओक्टूबर २०१५, अहमदाबाद