Tuesday, September 9, 2014

बन जाओ जुगनू लगाओ पहरा

बन जाओ जुगनू लगाओ पहरा, 
सूरज के घर न घुस पाए अँधेरा!

जो वकत झाड़िओ में छिप रहा है, 
घसीट ले आओ उसे आँगन में 
जो ज़ज़्बा दिल में दुःख रहा है, 
निकाल फेंको खुद के जहन से,

बहा दो पानी है जो आँखों में ठहरा 
बन जाओ जुगनू लगाओ पहरा, 
सूरज के घर न घुस पाए अँधेरा!

निचोड़कर पलके छत पे सुखाओ,
फटे गले से वो गीत गुनगुनाओ
कुरेदो अंगूठे से जमीन ऐसी की, 
झरना पाताल से कोई ढूंढ लाओ
करके सवारी उस झरने पर तुम
सारे दरियाओ को ठोकर लगाओ

उस पार से ले आओ अपना सवेरा 
बन जाओ जुगनू लगाओ पहरा, 
सूरज के घर न घुस पाए अँधेरा!

- मेहुल मंगुबहन, ५ सितम्बर २०१४, अहमदाबाद