कुछ लोग वक़त के मारे थे कुछ को लोगो ने मार दिया !
खंजर तो बस एक ही था पर सब ने नजर से वार किया !
एक खोली में आठ जान और छत जेसे की टुटा छाता,
फिर भी सबने हँसते हँसते बारिश से कितना प्यार किया !
सच कहू, जब तूफान आया में इक सपने में खोया था,
पता नहीं इस कश्ती ने कैसे इतना दरिया पार किया!
- मेहुल मंगुबहन, अहमदाबाद, ९ अगस्त २०१०
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