Tuesday, November 20, 2012

अबके जब तिरंगेवाला दिन आएगा.....


अबके जब तिरंगेवाला दिन आएगा..... 

बेवकूफ थे हम जो ढूंढते रहे जीवन के असली रंग तिरंगे में !
पेड़ के पत्तो सा हरा हरियाली का 
उगते सूरज सा केसरी हमारी पुरखो के शोर्य का 
नियत सा शुभ्र श्वेत अमन का !
हम बेवकुफो को क्या पता की सारे रंग एक दिन 
बम्बई के समंदर की तरह काले मटमैले हो जायेंगे !
हम तो समजते रहे तिरंगे को शान 
देश के होने या न होने से जिनकी लेनदेन नही एसे 
हजारो गाँवो का भी सन्मान !
पन्द्रह अगस्त और छबीस जनवरी को स्कुल में बाँटी गई टॉफी सा मीठा 
समजते रहे हम तिरंगे को !
हम बेवकुफो को क्या पता की एक दिन यह इतना कडवा भी लगेगा 
की न झेल पाएंगे न थूक पायेंगे !
हम तो समजते थे तिरंगे को सुकून की चादर 
जिसे ओढने जवान हँसते हँसते शहीद होते है !
हम बेवकुफो को क्या पता की यह चादर 
इक दिन ऐसा खिलौना बन जायंगी 
जिस पर हम न हस पाएंगे न रो पाएंगे !
आज के बाद जब तिरंगे का दिन आएगा 
उसकी लहरों में यक़ीनन मंडराते गिद्ध दिखाई देंगे, 
सारे रंग बेरंग दिखाई देंगे , 
ब्युगल की आवाज बन जाएगी चीख,  
राष्ट्रगीत बन जायेगा सन्नाटा, 
सारे माने बदल जायेंगे !
हो सकता है किसी काले झंडे को ही कहना पड़े तिरंगा !
अबके जब तिरंगेवाला दिन आएगा.... 
.... हाथ सलामी को बड़ी मुश्किल से उठ पायेगा !

- मेहुल मकवाना, 20 नवंबर 2012  

(बाल ठाकरे को दिए गए तिरंगे के राष्ट्रिय सन्मान पर)