Monday, July 25, 2011

शोपिंग

शोपिंग

जेब में बची थी सिर्फ एक नोट,
और उस पर छपे बापू इतने घिस चुके थे,
की जेसे स्टेशन पे लगी गुमनाम की पर्ची !
नोट पर उंगलिया फिराते फिराते,
शुरूं किया अपना चिंतन उसने !
सोच रहा था की केसे बचाया जाए आज इसे,
या फिर ऐसे केसे खर्च किया जाए की,
पेट के साथ दिल भी भर आए !
डबल रोटी ??
नहीं कल तो खाई थी !
नानखटाई और चाय ?
उस से क्या होगा ?
उसके चिंतन के बिच अचानक आ गई नाक,
जलेबियो की मीठी खुशबु ललचाने लगी उसे,
महक से अभी फटने लगा माथा,
उसने एक कदम बढाया खुशबु की तरफ और तुरंत रुक गया,
करतबी खिलाडी था वो, और चिंतन का रोज का महावरा भी !
एक गहरी साँस बहार निकाली और तुरंत ज़टक दिया सर अपना !
नाक के धोखे में क्यूँ पड़े ? आधा प्लेट बिरयानी तो आ ही सकती है ?
पर क्या फायदा ..ब़ोटी तो होती ही नहीं !
पिछली ईद पे किसी ने खिला दिया था फकीर समज के,
टंगड़ी तो दूर नाख़ून भी नहीं दिखा था !
चिंतन चालू रखते हुए उसने कदम आगे बढाए,
बार बार चहेरे पे आती दिन की थकान की लकीरों को पार करता
चलता रहा वो बाजार में देर तक !
उसे लगा की जब जेब में एक ही नोट हो और वह बहोत छोटा हो
तब बाजार बहुत बड़ा लगने लगता है !
आदतन घर से खेत और खेत से घर आते-जाते बैलो की तरह,
दोनों पैर उसके चल रहे थे अपने आप,
मेले में खो गए बच्चे जेसी आँखों से छटपटा रही नजर हर तरफ,
उसकी आँखों में लालसा थी लेकिन भय भी था,
आँख के एक कोने में मासूमियत भरी भूख थी,
और एक कोने में रोक के रखे हुए इमान के आंसू !
जेसे एक हाथ था जेब में नोट पर उंगलिया फिरता फिसल रहा था,
ठीक वेसे रात में वक़त जल्दी पिधल रहा था,
अब वो चलते चलते काफी आगे निकल आया था,
टावर की घडी में वक़त देखकर मुस्कुराया,
बस्ती के नाके पे आठो प्रहर खुली रहती दुकान के ठीक सामने था वो अब !
पूरी बाजार से बचाया हुआ दस का नोट उसने उसने ऐसे फेंका
दुकानवाले की तरफ जेसे बोज उतार फेंका हो !
आगे ना वो कुछ बोला, ना दुकानदार ने कुछ पूछा !
आँखों आँखों में हो गया सौदा,
चार डबलरोटी , एक रुपीये की येवला,
अजनबी ब्रांडवाली बच्चो की नमकीन
और एक चाय का शोपिंग कर लिया उसने !

मेहुल मकवाना, २५ जुलाई २०११, अहमदाबाद

Thursday, July 21, 2011

પેલ્લા પૂછે કે કોનું પાણી છે?


કમબખ્ત ઈશ્ક આ પઠાણી છે,
યાદોની રોજ કડક ઉઘરાણી છે.

કદી ઊંઘમાં ય કરે પગપેસારો,
આપણી ઇચ્છાઓ બહુ શાણી છે .

હજારો ભાવ એકસામટા જીવે ,
મનુષ્ય સાલું અજબ પ્રાણી છે.

હોય તરસ તોય ય ભેદ રાખે,
પેલ્લા પૂછે કે કોનું પાણી છે?

પીલે અવિરત સહુ બળદ થઇ,
છે જિંદગી કે તેલની ઘાણી છે ?

મેહુલ ૧૩ મેં, ૨૦૧૧

* પઠાણી શબ્દ કહેવતના આધારે વાપર્યો છે; એમાં કોઈ સમુદાયનું મન દુભવવાનો ઈરાદો નથી.