दर्द सारे जहाँ में वेसे एक समान है !
कही सपने है बड़े कही छोटी उडान है !
ये लफ्ज़ है महज, धोखा न खाईये,
सुनिए जो यहाँ नजर की जुबान है !
गर मिल भी जाये मिट न पायेंगे,
ये फांसले जो हमारे दरमियाँ है !
फसल चूल्हे तक नहीं ला पाता है,
वो किसान जो खेत में बोता धान है !
६ सितम्बर २०१०, अहमदाबाद