Monday, September 27, 2010

आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है


सच कहू तो जीते जी वो क़यामत ढाती है,
इश्क जब साबित करने की नौबत आती है !

हम ही शोरगुल में सुन नहीं पाते है शायद,
जिन्दगी जो गीत अक्सर गुनगुनाती है !

इश्क के दोहरे दर्द की कोई बात न करता है
रूह से निकली याद जिस्म तक फ़ैल जाती है !

कई दिनों से शहर में दंगे नहीं हुए है लेकिन,
आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है !

नगर ढिंढोरा पिटो , चाहे लगाओ नारे हजार,
अपनी आधी जनता आज भी भूखी प्यासी है !

-मेहुल मकवाना ,२७ सितम्बर २०१०,अहमदाबाद

Saturday, September 25, 2010

बचपन

जब भी में किसी बच्चे को सोता देखता हु,
तो मन करता है की कोई खूबसूरत खिलौना बन के,
बस जाऊ उसके सपने में,
और खेल लू अपना सारा बचपन !
मेहुल मकवाना, १९ सप्टेम्बर ,2010

Saturday, September 4, 2010

પડ્યાતા આંખમાં જે સોળ એને દેખાયા નહિ.

અમથી હતી ભીનાશ પણ જબ્બર નડી ગઈ,
પડ્યાતા આંખમાં જે સોળ એને દેખાયા નહિ.

એમના રંગ કે ખુશ્બુનો પછી અર્થ કશો ન રહ્યો,
હાય એ ફૂલો કે જે તારા કેશમાં ગુંથાયા નહિ.

એક ચીંધેલી આંગળીએ અવિરત ચાલ્યો હું,
પણ રસ્તાઓ કદીય પાછા ફંટાયા નહિ.

હદ થઇ હવે આ કાળા અંધકારની હદ થઇ,
ખુદ આવ કયારેક ,આમ મોકલ પંડ્છાયા નહિ.

Kal tak vo aadmi jinda misal tha


आज सस्ती शराब थी नशा कमाल था,
होश आने पर भी तेरा ख्याल था !

मईयत पे उसको कान्धा नसीब हुआ नहीं ,
कल तक वो आदमी जिन्दा मिसाल था !

वो आये आँगन तक और वापस मुड गए,
कुछ ऐसा तब मेरे घर का हाल था !

कई सन्नाटे ने घेर लिया था राह चलते,
सच कहू कल शहर में कुछ तो उबाल था !

सिर्फ एक बात पे मेरा रंग फीका पड़ गया,
उनकी गली में कल ज्यादा गुलाल था !
21 august , 2010, ahmedaabd

Kuch log

कुछ लोग वक़त के मारे थे कुछ को लोगो ने मार दिया !
खंजर तो बस एक ही था पर सब ने नजर से वार किया !

एक खोली में आठ जान और छत जेसे की टुटा छाता,
हँसते हँसते फिर भी सबने बारिश से कितना प्यार किया !

सच कहू तो, जब तूफान आया में इक सपने में खोया था,
पता नहीं की इस कश्ती ने, केसे इतना दरिया पार किया!

-अहमदाबाद, ९ अगस्त २०१०