इश्क जब साबित करने की नौबत आती है !
हम ही शोरगुल में सुन नहीं पाते है शायद,
जिन्दगी जो गीत अक्सर गुनगुनाती है !
इश्क के दोहरे दर्द की कोई बात न करता है
रूह से निकली याद जिस्म तक फ़ैल जाती है !
कई दिनों से शहर में दंगे नहीं हुए है लेकिन,
आते-जाते अब भी कई आँखें कतराती है !
नगर ढिंढोरा पिटो , चाहे लगाओ नारे हजार,
अपनी आधी जनता आज भी भूखी प्यासी है !
-मेहुल मकवाना ,२७ सितम्बर २०१०,अहमदाबाद