Saturday, August 14, 2010

१५ अगस्त २०१०

बच्चा एक

वो कल से लेके घूम रहा था एयरबड,
पर शहर तो ऐसे ही कान में रुई डाले घूमता है,
और हमेशा रेड -ग्रीन लाइट की फिकर में रहता है,
एक भी न बिकी,
रात को खानी पड़ी रोटी सुखी !
आज उसने तिरंगे लिए तो सारे बिक गये !
चलो अच्छा हुआ
देश कुछ तो काम आया !

बच्चा दो

वो कितने दिन से मांग रहा था,
कुछ बात बनाके माँ भुला देती थी,
और बाप को तो वो शायद याद भी न था,
दोस्तों को देखकर जी जलता था
और गले में कुछ खलता था,
आखिर आज स्कुल में मिल टॉफी,
चलो अच्छा हुआ
देश कुछ तो काम आया !

बच्चा तीन

आज फिर उसका सूरज गाली बकते हुए निकला,
दूर से सुनाई दिया लाउडस्पीकर उसे,
अखंड राष्ट्र और समानता ऐसा कुछ जोर से सुनाई दिया
फिर तुरंत और जोर से आवाज आई...कम पे लग जा मादर....
वो फटाक से खड़ा हुआ और लग गया सफाई करने,
सारे कप उसने अच्छे से धोये,
एक भी टूटने न दिया,
और फिर आगे का दिन बाकी के दिन जैसा ही चलता रहा !
फिर कुछ नारे बजी हुई आसपास
बेंड बाजे का साथ निकला एक जुलुस,
पुलिस ने आके बंद करवाया बाजार
और बांटी गई मिठाई भी,
और मिल गयी आज मीठी छूटी उसे,
चलो अच्छा हुआ
देश कुछ तो काम आया !

- १३ अगस्त २०१०, अहमदाबाद

Monday, August 9, 2010

न होगा अल्लाह तेरे संग, मेरे साथ राम न होगा



यु तो पहले भी इस दौर से गुजर चूका हु मै,
डर है की अबके कोई नया मकाम न होगा !

खूब जशन मनाएंगे इक दूजे को गले लगा के,
न होगा अल्लाह तेरे संग, मेरे साथ राम न होगा !

उम्र हुयी उनके लबो से अपना नाम सुने यारो,
इस जहाँ में और कोई मुजसा न बदनाम होगा !

उम्र ढली पर सीख न पाए कोई हुन्नर जीने का,
शायद इस जहाँ में अब अपना कोई दाम न होगा !

-मेहुल मकवाना , अहमदाबाद, ८ अगस्त २०१०