मैं नहीं जानता तुम कैसे हो
गोरे हो या काले, मोटे हो या पतले
आदमी हो या औरत या उभयलिंगी कोई
प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी
मैं नहीं जानता तुम कौन हो
यह भी नहीं जानता की तुम होंगे कहां
हो सकता है प्रधानमंत्री आवास में हीं हो तुम्हारा घर
हो सकता है तुम किसी दूर देश में बैठकर सीते होंगे उनके कपडे
तुम आफ्रिकन भी हो सकते हो अमेरिकन भी
या नागपुरिया या लखनवी या अहमदाबादी भी
प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी
कभी कभी मुझे शक होता है कि तुम शायद मंगलवासी होंगे
खैर जो भी हो पर तुम प्रधानमंत्री के दरजी हो उस से बडी बात क्या होगी
अच्छा खासा कमाते होंगे वह खुशी की बात है इस दौर में
प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी
मै जब भी टीवी देखता हुं या पढता हुं कोई न्यूझ इन्टरनेट पर
पता नहीं क्यूं हर बार दिख जाते है माननीय
और जब जब मैं उन्हें देखता हुं मुझे तुम याद आ जाते हो
हा सच हैं हम कभी मिले नहीं लेकिन
मैंने हर बार तुम्हे महसूस किया है
कभी सुट में, कभी कुर्ते में
कभी जॅकेट में कभी साफे में
प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी
छप्पन इंच का सीना खुद तो नहीं आयेगा नाप देने यह तो जानता हुं मैं
पर सोचता हुं अकसर की नाप कैसे लेते होंगे तुम?
या फिर जैसे कि माननीय कैमॅरा के अंतर्यामी हैं तो
वही लेता होगा नाप औरे देता होगा तुम्हे सटीक हिसाब
प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी
हर रंग हर नसल का कपडा सीधा पीएमओ से ही आता होगा समझ सकता हुं
पर क्या उस कपडे को काटते वक्त कांपते है हाथ तुम्हारे
कि छप्पन में कहीं एक ताना भी पड जाए न कम
क्या मशीन चलाते वक्त लॉकडाउन में भागे मजदूरो के पैरो जितना बोझ महसूस करते हो तुम प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी?
पता हैं हम जब छोटे थें तो पिताजी के बचे कपडे से बनवा लेते थे चड्डी
और बचे न कुछ ज्यादा तो माँ मांग लेती थी सारी चिंदी तकियें में भरने
तो क्या भेजते हो तुम चिंदी वापिस माननीय को हिसाब के साथ
या फिर बनवा लेता है मंत्री कोई बचे कपडे से चड्डी?
प्रिय प्रधानमंत्री के दरजी
लोग कहते है तुम हो कोई ब्रान्ड बडी
क्या पता पर सच ही कहते होंगे आखिर तुम हो उनके दरजी
जानते हैं कि बहुत बिझी रहते होंगें तुम
पर चाह बहुत है तुमसे मिलने की
गर वकत् मिले या फिर आना हो इस तरफ कभी तो
मुनिरका स्टेशन के रोड पर चायवाले चच्चा के बगल में
एक मशीन लगाये बैठे हैं हम भी
रफूवाला पूछोगे तो बता देगा पता कोई भी
- मेहुल मंगुबहन, 20 दिसंबर 2020, दिल्ही